बचपन का एहसास: मोबाइल से पहले की दुनिया
बचपन का एहसास: मोबाइल से पहले की दुनिया
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एक समय था, जब उस ज़माने में पास मोबाइल नहीं थे। उस वक्त बच्चों का जीवन अपेक्षाकृत सरल था।
सुबह जल्दी उठना, स्कूल जाना, दोस्तों के साथ खेलना — यह हमारे दिनों का हिस्सा था ।
- दोस्तों के साथ घूमना, पार्क में खेलना, पतांग उड़ाना
- अपनी कल्पनाओं को जागृत करना, कहानियाँ सुनाना, एक दूसरे के साथ गाना
- पुस्तकें पढ़ना, चित्रकारी करना
वो समय हमें याद दिलाता है कि आनंद छोटी-छोटी चीजों में भी मिलता है
मोबाइल जगत में फँसे बच्चे: चिंता और अकेलापन
पहले तो ये सोचते हैं कि बच्चे आजकल खेलों में रमते हुए रहते हैं। लेकिन वास्तव में वो केवल एक छोटे से जगत की दुनिया में फंस गए हैं। ये मोबाइल जगत उन्हें अपनी {चिंता और अकेलापन रखने लगता है। ये बच्चों का मन एक नई चुनौती से {निभर{ हो जाता है।
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एक ओर तो ये बच्चे नए सिरे से खेल, वीडियो गेम और सोशल मीडिया|गेमिंग और नई तकनीकों से परिचित होते हैं। लेकिन दूसरी ओर उनके सामाजिक कौशल पर भी इसका बुरा असर पड़ता है। ये बच्चों को वास्तविक दुनिया से दूर ले जाता है, जहाँ वो अपने संगी से मिलकर, खेलकर और सीखकर **बढ़ते हैं|जीवन जीते हैं|समय बिताते हैं**
सोशल मीडिया का चंगुल : असली जिंदगी को भुलाना
आजकल हर जगह सोशल मीडिया का चंगुल है। लोग अपने फोन में उलझे रहते हैं और वास्तविक दुनिया से दूर चले जाते हैं। हर पल में फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर पर शेयर करते रहते हैं और दूसरों की कहानियाँ देखकर खुद को महान महसूस करने का प्रयास करते हैं। लेकिन यह सब एक झूठी दुनिया है जो हमें असली जिंदगी से दूर ले जाती है।
मोबाइल, एक दोधारी तलवार: संडे और त्योहारों का नया रूप
आजकल के युग में मोबाइल हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। सबसे लोग अपने दिन भर में मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं, चाहे वह काम हो या शौक। लेकिन यह दोधारी तलवार है जो हमें आनंद और परेशानी दोनों दे सकती है। उचित हो गया है कि हम मोबाइल का इस्तेमाल समझदारी से करें, खासकर समावेशी संडे और त्योहारों के दिनों में।
जब हम मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं तो हमें अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताना न भूलें। जैसे ही हम त्योहार मनाते हैं, उस समय हमें एक दूसरे से जुड़ने का मौका मिलता है और ये पल हमेशा के लिए यादगार बन जाते हैं।
- इसलिए मोबाइल का इस्तेमाल संतुलित रूप से करें ।
- अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताएं ।
- त्योहारों में एक दूसरे को याद रखें और प्यार दिखाएं ।
बचपन की खोई हुई खुशियाँ: मोबाइल युग में चिंता का उदय
मोबाइल युग/जमाना/दौर में, बचपन की खुशियाँ/मस्तीएँ/सुख एक फिर से/पुराने/नए स्वरूप में आती हैं। छोटे बच्चों की आँखें/नजरें/देखें अब स्मार्टफ़ोन/मोबाइल/डिवाइस पर लगी रहती हैं और गेम/ऐप्स/प्रोग्राम में खो जाती हैं। यह स्थिति/परिवर्तन/दशा बचपन की खुशियाँ/जीवन/आनंद को छीन रही है और उसकी जगह चिंता/डर/गिरन ले रही है।
बच्चों/युवाओं/किशोरों में पर्याप्त/कुछ/बहुत आराम की कमी, निराशा/हास्यास्पद/उत्साहित भावनाएँ और प्रतियोगिता/जिज्ञासा/मौलिकता का अत्यधिक दबाव उन्हें चिंतित करता है। यह परिवर्तन/दशा/स्थिति बच्चों के
मनोबल/स्वभाव/आत्मविश्वास को कमज़ोर बना रही है और उनके
भविष्य/जीवन/यात्रा में
हानि/विघटन/चुनौती उत्पन्न कर रही है।
रविवार का उत्सव : मोबाइल का प्रभाव गहरा है
कई साल पहले, रविवार एक ऐसा website दिन था जब परिवार साथ बैठते थे, खेल खेलते थे या फिर कहानियाँ सुनाते थे। Family Fun Times में खोया हुआ समय अब बदल गया है। आजकल, संडे-त्योहार में मोबाइल फोन का भय गहरी हो गई है। हर कोई अपने स्मार्टफोन में डूबा , सोशल मीडिया पर व्यस्त होता है।
यह परिवर्तन एक शांत दिन को बदल रहा है। पहले, रविवार परिवार और दोस्तों के साथ खेल खेलना पर केंद्रित होता था। अब, बच्चे Playing Games, बड़े लोग Busy on Social Media , और सभी के लिए Real Connection Missing हो रहा है।
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